________________ प्रथम आदेशः वृद्धया जल्पितस्ताव-दहो अम्बडनामकः / भवान् गोरखयोगिन्या प्रेषितो ज्ञातमस्ति मे // 46 // अम्बड शतशर्करवृक्षस्य फलग्रहणाय गच्छसि / न लभेथाः फलं यावत् तावत् क्रीडितुमर्हसि // 47 // चरित्रम् एषा चन्दावली पुत्री मद या रमते मुदा / जाने निःस्वस्य का क्रीडा रमस्व सममेतया // 48 // & प्रमाणमिति यो रन्तु-मासीनो जल्पितस्तया। रमिष्यसे मया सार्द्ध-मेतैः सूर्यादिकन्दुकैः // 4 // यस्यैवं रममाणस्य हस्तादेः कोऽपि कन्दुकः। पतिष्यति यदा भूमौ तदा तेनैव हारितम् // 50 // करोति हारको जेतुः पादसेवां सुनिश्चितम् / प्रतिज्ञामिति कृत्वा म कथयामास तां प्रति // 51 // त्वं दास्यसि यदा दाणं रमिष्येऽहं त्वया सह / प्रमाणमिति कृत्वाऽसौ तत्र रन्तु प्रवर्तितौ // 52 // चन्द्रावली च भेदज्ञा यदा भास्करकन्दुकम् / उल्लालयेत् तदा घस्रः स्यान्निशाचन्द्रकन्दुकात् // 53 // उल्लालितौ यदा राहुः मङ्गलौ कन्दुको ततः। अन्तरे प्राप्स्यतः स्थैर्य-मेतस्याः शक्तिरद्भुता // 54 // अम्बडो वीक्ष्य साश्चर्यं तया दत्तैकदाणकः / करे विलोकते यावत् गृहीतं सूर्यकन्दुकम् // 55 // | गतचेष्टो भवेत्तावत् किरणैराकुलस्तदा / उल्लालितो रवियोग्नि प्राप्तमूर्छाम्बडान्वितः // 56 //