________________ अम्बडचरित्रम् द्वितीय आदेशः // 16 // अथ सा प्राह हे साधो ! पितृभ्यां शैशवेऽन्वहम् / पण्डितायाः सरस्वत्या मुक्ताऽध्येतु तदन्तिके // 47 // भव्येन पाठयेत्सा मां राजपुत्र्या विशेषतः / अपरं पुत्रिका सप्त पौराणां व्यवहारिणाम् // 48 // एवमष्टो मिथः कन्याः सस्नेहा इव सोदराः। वयं ता लेखशालिन्यः पठामस्तत्र सर्वदा // 4 // तास्तिष्ठन्ति दिवारात्रौ तस्या मातुरिवौकसि। अन्यदा जागरारात्रौ स्थिता पश्यामि चेष्टितम् // 50 // मध्यरात्रौ सरस्वत्याश्चतुःषष्टीयमण्डलम् / मण्डितं तत्र योगिन्यः चतुःषष्टिः समागताः // 51 // प्रवृत्ताः स्वेच्छया रन्तु तया पण्डितयाऽकथि। मातुः प्रसाद कुर्वन्तु सिद्धिं ददतु मेऽधुना // 52 // K प्रथमं कथितं ताभिः पण्डितेऽस्माकमेव हि / देहि मे प्राणपिण्डानि सिद्धिं दमो यथा वयम् // 53 // | पण्डिता प्राह युष्माकं कल्पिता अष्ट कन्यकाः। गृहन्तु विधिवत्सर्वाः प्राहुस्ताः शृणु सेविके // 54 // चतुर्दश्यां सनैवेद्या मध्याह्न रविवासरे। कल्पनीया इमाः सर्वाः कथयित्वेति ता ययुः // 55 // | तच्च सर्व श्रुतं दृष्टं मया जागरमाणया / सञ्जाता भयभीताऽहं कन्याभिः कथितं प्रगे // 56 // // ईदृशी दृश्यसे दीना कथं राजसुतेऽधुना। तत्पृष्टा रात्रिवृत्तान्तं कथयामास तत्पुरः // 47 // | // 16 //