________________ अम्बड पश्चम आदेशः चरित्रम् मुक्ताऽहं लेखशालायां पित्रा पठनहेतवे / चतुःषष्टिकलाशास्त्रं पठन्तीं नवयौवनाम् // 12 // | प्रेक्ष्य मां माणिभदोऽपि खेचरस्तत्र आगतः / उत्पाटय व्योममार्गेण गतो वैताढयपर्वतम् // 53 // // तेनाहं पाठिता गौरीप्रज्ञप्तीप्रमुखाः कलाः / ततो मां परिणेतु स सज्जोऽभून्मदनातुरः // 54 // तावत्तस्य सुतो भद्र-वेगविद्याधरोऽपि माम् / दृष्ट्वा रूपवती मोहा-न्ममार पितरं हहा // 55 // हाहाकारोऽभवत्तत्र तावत्तत्पुरनायकः। आगत्य वेगविद्याभृत् भद्रवेगं व्यनाशयत् // 56 // स्वरूपं तादृशं दृष्ट्वा स्वरूपं निन्दितं मया। धिग् रूपं जन्म धिक् स्त्रीणां घिग् रागं मरणं वरम् // 57 // उक्तश्च-न गणेइ कुलकलंक न गुरूवएसं न सीलपन्भंसं / मारेई पियवंधं धिद्धी रागाउरो पुरिसो // 5 // उत्पन्नो मत्कृतेऽनर्थः किमर्थं जीव्यते मया / मर्तुकामाऽभवं नूनं पार्श्ववापीमगां रयात् // 5 // तटस्थवृक्षमारुह्य तत्र पातं वितन्वती / तावद्ध गेन धृताऽहं वेगिना खेचरेन्दुना // 60 // मोहेन स्वीकृता तेन भेजे सांसारिक सुखम् / अन्यदाऽन्यस्त्रियासक्तो न जल्पयति मां स च // 61 // मयाऽसौ वारितोऽनेक-प्रकारैर्न च तिष्ठति / तदा मम समुत्पन्नं वैराग्यं भाग्ययोगतः // 62 // // 63 //