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________________ // अथ चतुर्था देशः // अम्बड चरित्रम् // 37 // समेत्य समये सोऽपि पुनः गोरक्षयोगिनीम् / ययाचे तुर्यमादेशं बालवत्सुखभक्षिकाम् // 1 // . योगिनी सैवमादेश-मादिदेश चमत्कृता / अहो अम्बड ! वीरत्वं धीरत्वं तव चेच्छृणु // 2 // पत्तने नवलक्षेऽस्ति बोहित्थो व्यवहारिकः / मर्कटीं नवलक्षी स्यात् तद्गृहे तां समानय // 3 // तस्या श्रादेशमादाय गुरुवाक्यमिवाम्बडः / तत्पुरं प्रत्यगात्शीघ्र कार्यार्थी न विलम्बते // 1 // यतः-कोतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् / को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् // 5 // पन्था पादेन घातेन वैरी वातेन वर्षणम् / कार्यं स्यात्समुदायेन चतुष्कं च शनैः शनैः // 6 // गच्छतः पथि तस्यागात् वनमेकं महाऽद्भुतम्। सुगन्धनानापुष्पाणां सुगन्धैश्व विशेषतः // 7 // पश्यता चम्पकाशोकजातीबकुलकेतकीः / तत्र वृत्तान्तरे बाला दृष्टैका तेन यान्त्यपि // 8 // // // 37 //
SR No.600425
Book TitleAmbad Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijayjinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1984
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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