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________________ अम्बर चतुर्थ आदेश चरित्रम् // 38 // दृष्ट्वा तामुर्वशीतुल्यां विद्युत्भात्कारसन्निभाम् / प्रेरितो दृष्टिरागेण प्रत्यधावत्तदाम्बडः // 6 // मध्ये सरोवरं यावत् क्वाप्यगानवयौवना / दृष्टाम्बडेन सर्वत्र न लेभे कुत्र बोधिवत् // 10 // विषादी तत्र तां बालां परिभ्राम्यति वीक्षितुम् / वियोगी रामवत्सोऽपि प्रतिजल्पति पादपान् // 11 // अहो वृक्षाः स्थिरा यूयं क्व दृष्टा युवती च सा / तदर्शन वियोगा कृपां कुरुत तन्मयि // 12 // उक्तश्च-विकलयति कलाकुशलं, हसति शुचिं पण्डितं विडम्बयति / अधरयति धीरपुरुष, क्षणेन मकरध्वजो देवः // 13 // गाहाण रसो महिलाण विभमो कविजणस्स वयणाई। कस्स न हरन्ति चित्तं बालाण य मुम्मणालावा // 14 // वनभीतरि अम्बड भमइ रुदन करइ तिणि दुक्खि / दोहिलइ दीहडला गमइ स्त्री स्त्री भाषइ मुखि // 15 // स्त्री दीठइ मनमोहीइ किम न वेधाइ विलास। वागुरि हरिण झबूकीइ किम न पाडइ ते पास // 16 // अकस्मादागमत्पुष्प-बटुकः कोऽपि तावता / अग्रे फलं विमुच्यैकं प्रणम्याम्बडमब्रवीत् // 1 // हे अम्बड ! समायातु त्वामाहात्यमरावती। श्रावासे वर्त्तते सैव श्रृत्वैवं हर्षितोम्बडः // 18 // अम्बडः प्राह हे मित्र ! कस्त्वं सा काऽमरावती / फलं च किमिदं पुष्ष-बटुकः प्राह तं प्रति // 1 // // 38 //
SR No.600425
Book TitleAmbad Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijayjinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1984
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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