________________ अम्बडचरित्रम् | उद्घाटय नगरद्वारं प्रधानास्तद्भटैः सह / वने गत्वाऽम्बडं नेमु-रुपदापाणयो मुदा // 7 // यतः-विरला जाणंति गुणा विरला पालंति निद्धणा नेहा / विरला परकज्जकरा परदुःखे दुखिया विरला // 8 // रिक्तपाणिर्न पश्येच्च राजानं दैवतं गुरुम् / नैमित्तिकं च वैद्य च फलेन फलमादिशेत् // 86 // सत्कृतास्तेन तेऽमात्या अम्बडं च व्यजिज्ञपत् / कुरुष्व निजरूपेण भूपं रूपविपर्ययम् // 110 // एकाङ्गवरवीरत्वं परोपकृतितत्पर ! / परदुःखहर ! स्वामिन् कृपां कुरु प्रसन्नधीः // 11 // पुरमध्ये समायातु विकृतिर्यातु भूभुजः / स जगाद कथा स्तोका पूर्व पश्यामि धीसखा ! // 12 // ततः सोऽम्बड उत्तस्थौ वीरः स्वल्पपरिग्रहः / सोत्सवं पत्तने गत्वा तादृशं भूपमैक्षत // 13 // कृत्वा हाहेति सोऽप्याह-विषमा कर्मणां गतिः / कस्यचित् चेष्टितं पश्य कुर्वे भूपं निरामयम् // 14 // कि दास्यथ प्रधाना मे लभ्यते जल्पितं वचः। दातव्या सचिवैरुक्तं राज्याई राजकन्यका // 15 // अहो वीर ! किमेतच्च मूल्यं नैवोपकारिणः। दीयते यच्च तत्स्वल्पं यद्यशः सर्वतश्विरम् // 16 // यतः-न श्रीकुलक्रमायाता शास्त्रेषु लिखिता न च / खड्गेनाक्रम्य भुञ्जीत वीरभोग्या वसुन्धरा // 7 // // 55 //