________________ द्वितीय आदेशः | यदा सा मण्डयेकाले चतुःषष्ठीयमण्डलम् / परिधत्तेऽन्तरे गत्वा योगिन्यर्पितसाटिकाम् // 6 // अम्बड पर्यधाः कञ्चुकं कन्ये पराभिः सप्तभिस्तदा / रक्षणीया मुखे सप्त गुटिकाः कुशलप्रदा // 70 // चरित्रम् साटिकां परिधायैषा कञ्चुकं वीक्ष्य तत्क्षणम् / पतिष्यति पतन्त्याया नेतव्या साटिका द्रुतम् // 71 // || // 21 // मरिष्यति स्वयं सैव युष्माकं कुशलं भवेत् / भक्षयिष्यन्ति योगिन्यो यास्यन्ति प्रीणिताश्च ताः // 72 // इत्युक्त्वाऽर्कस्तिरोभृतस्ताः सर्वा हर्षितास्तदा / व्रजन्ति लेखशालायां पठनाय भयोज्झिताः // 73 // अन्यदा कथयामास पण्डिता बालिका प्रति / युष्माकं सङ्कटं किन्तु पश्यामि दूयते मनः // 7 // प्राहुस्ताः पण्डिते मात-रस्माकं कुरु शोभनम् / सा जगाद करिष्येऽहं युष्माकं विनवारणम् // 7 // बीततो रविदिने सर्वाः कन्या आकार्य मण्डले / तया नैवेद्यसंयुक्ता वयं तत्रोपवेशिताः // 7 // / अस्मान् तत्रैव संस्थाप्य मन्त्रेण कल्पनां व्यधात् / पूजाहोमादिकं कृत्वा मध्येगेहं गता च सा // 77 // यावत्तां साटिकां सज्जा परिधातु भवेत्तदा / कञ्चुकः सूर्यवाक्येन मया परिदधे दु तम् // 7 // अपराभिमुखे क्षिप्ता गुटिका तावता च सा / साटिकां परिधायागात् कञ्चुकं वीक्ष्य मिप्रिये // 7 //