Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड सप्तम आदेश: चरित्रम् // 10 // ततः-तडित्वानिव यो गर्जन श्यामवर्णश्चतुर्भुजः / द्रष्टुं सर्वजनोऽप्यागात् दृप्तेव सुलसा न तु॥६॥ | प्रतीच्यामम्बडोऽन्येद्य : प्रादुरासीन्महेश्वरः / पार्वत्या सह यः क्रीडन् दधचन्द्र त्रिलोचनः // 7 // जटावान् वृषभारूढः सर्पभूषो गणाश्रितः। पश्यत्येतं जनं सर्वं व्यग्रां किं सुलसां न ताम् // 8 // युग्मम्॥ कौबेर्यामम्बडो जातो भावितीर्थेशवर्णिकः / पञ्चविंशजिनेन्द्रस्य छायां चक्रे स्वविद्यया // 1 // तदर्शने जनोऽभ्येति श्रुत्वा साऽथ सखीमुखात् / विद्यमाने जिने नान्यः सा दथ्यौ व्योम्नि नो रविः // 10 // ज्ञात्वेति धर्मधीस्तत्र नागमन्नागगेहिनी / अम्बडोऽगात् जिनोक्तायास्तस्या गेहं चमत्कृतः // 11 // दिने ब्रह्मरूपं यथा भूतमादौ, द्वितीये मुकुन्दस्य शिवं तृतीये। चतुर्थे जिनं पञ्चविंशं स चक्र, समग्रं समेतं पुरं सा तु नागात् // 12 // ततस्तं सुलसा मत्वा भणित्वा धर्मबान्धवम् / सम्यक्त्वेऽद्रढयत् सोऽपि गुरुवत्ताममन्यत // 13 // उक्तञ्च-भो भव्या जिनधर्मस्य द्वारं 1 मूलं 2 प्रतिष्ठितम् 3 / आधारो 4 भाजनं चैव 5 निधि 6 सम्यक्त्वमेव हि // 14 // | // 10 //

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