Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 112
________________ सप्तम आदेशः तद् पमथ तबृद्धि-स्तस्या लवणिमाऽथवा / किमेतदर्शनेनास्या येन रागो जितोऽर्हता // 18 // अम्बडचरित्रम् || ज्ञातं हि मत्कृते ज्ञातनन्दनो दर्शयेच्च ताम् / सतां परगुणग्राहः परोपकृतिलक्षणम् // 16 // | मनोऽतिमात्रं स्त्रीमात्रे ध्यावा राजगृहं ययौ / तस्याः स्थैर्यपरीक्षार्थ चक्रे रूपचतुष्टयम् // 20 // // 10 // | स्वयम्भूः पार्श्वसावित्री गावित्रीति परिग्रहः / अक्षसूत्रं दधद्वेदा-नुचरंश्चतुराननः॥१॥ गोपुरे दिशि पूर्वस्यां ब्रह्माऽभूदम्बडः स्वयम् / / सर्वो लोकः समायातः किं नाऽगात् सुलसाऽलसा // 2 // युग्मम् // दक्षिणस्यां पुरद्वारे विष्णुरूपोऽम्बडोऽभवत् / नृत्यगीतकलाटोप-गोपस्त्रीपरिवेष्टितः // 3 // उक्तञ्चकस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं, नासाग्रे नवमौक्तिकं करतले वेणुः करे कङ्कणम् / | सर्वाङ्गे हरिचन्दनं मलयजंकण्ठे च मुक्तावली, गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणिः॥ 4 // K अपि च-अङ्गनामङ्गनामन्तरे माधवो, माधवं 2 चान्तरे चाङ्गना। एवमाकल्पयत्ताण्डवं सुन्दरं, संजगी वेणुना देवकीनन्दनः // 5 // // 10 //

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