Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 111
________________ सप्तम अम्बडचरित्रम् आदेश: // 107 // यतः-कतिपयपुरस्वामी कायव्ययैरपि दुर्घहो, मतिवितरिता मोहेनाहो मया न श्रुतः पुरा / त्रिभुवनपतिर्बध्याराध्योऽधुना स्वपदप्रदः, प्रभुरपि गतस्तत्प्राचीनो दुनोति दिनव्ययः॥८७॥ | यदघिरेणुपीयूष-पानतस्तृप्तमानसः / अयाचत जिनं वीरं सम्यक्त्वं प्राप मत्पिता // 8 // | संसारसागरे मजन कर्मभारेण भारितः / कर्णधारसमानेन प्रभो!ऽहं भवतोद्धृतः // 8 // इति केशिगुरु स्तुत्वा नत्वा तचरणाम्बुजम् / सम्यक्त्वरत्नमादाय मत्पिता गृहमागमत् // 110 // इन्द्रियाणामजेयत्वात् कामकल्लोललोलितः / पुनमुञ्चति गृह्णाति सम्यक्त्वं दुर्लभं भवेत् // 11 // दर्शने दर्शने धर्मः कर्ममार्गविधायकः / स्थाने स्थाने न सम्यक्त्वं मोक्षतत्त्वप्रकाशकम् // 12 // _उक्तश्च-शैले शैले न माणिक्यं मोक्तिकं न गजे गजे / साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने // 63 // जानन् सम्यक्त्वमाहात्म्य-मगम्यं बहुकर्मणः / सम्यक्त्वे दृढता नासी-च्छैथिल्यानिजचेतसः // 14 // वारानष्टादशैवं तु गृहीतं मुक्तमेव तत् / श्रीवीरस्तद् दृढीकत्त सुलसां तामदर्शयत् // 15 // सुलसाऽम्बडद्रष्टव्या वाक्यं वीरजिनेशितुः। धर्मोपदेशवेलायां दथ्यौ श्रुत्वेऽति सोऽम्बडः // 16 // ययाऽयं निजरागेण वीतरागोऽपि रञ्जितः / सुरासुरसभामध्ये पक्षपातोऽन्यथा कथम् // 17 // ||107 //

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