Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 109
________________ अम्बड सप्तम आदेश: चरित्रम् भूतप्रेतपिशाचादिशक्तयो यान्ति दास्यताम् / सम्यक्त्वमेकचित्तेन पालितं गृहमेधिना // 66 // अम्बडः प्राह हे पूज्य ! सम्यक्त्वं किश्च कथ्यते / गुरुराह महाभाग ! वीतरागः सुरार्चितः // 6 // स्वर्णरूप्यरत्नमयप्राकारत्रयराजितः / रागादिदोषनिमुक्तः छत्रत्रयचतुर्मुखः // 6 // // 10 // यतः-अन्तराया दानलाभ-वीर्यभोगोपभोगकाः। हासो रत्यरतीभीतिर्जुगुप्साशोक एव च // 6 // कामो मिथ्यात्वमज्ञानं निदा चाविरतिस्तथा। रागो द्वेषश्च नो दोषा-स्तेषामष्टादशाप्यमी // 17 // इत्यष्टादशदोषैर्यो वर्जितो गुणगर्जितः / प्रक्षीणदुष्टकर्मारिः सर्वारिष्टविनाशकः // 71 // प्रातिहार्याष्टकोपेतः सर्वज्ञः सर्वदर्शकः / चतुस्त्रिंशदतिशयः पञ्चत्रिंशद्रचोगुणः // 72 // अनन्तगुणसम्पन्नः प्रसन्नः सर्वजन्तुषु / ईदृशो देवदेवोऽयं प्रथमं तत्त्वमुच्यते / / 73 // तद्भाषितो दयामूल-धर्मस्तत्त्वं द्वितीयकम् / धर्मोपदेशकः पञ्च-महाव्रतधरो गुरुः / / 74 // || तृतीयं तत्त्वमादिष्टं सम्यक्त्वमिदमुच्यते / विषयेऽस्मिन् महाभाग ! सन्देहं मा कृथा मनाक् // 7 // साक्षात् सम्प्रति वीक्षस्व विद्यमानो जिनेश्वरः / श्रीवर्द्धमाननामैव-मनन्तद्धिः प्रवर्त्तते // 76 // // 10 //

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