Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 104 // सांख्यः शिखी जटी मुण्डी कषायाद्यम्बरोऽपि च / वेषेऽनास्थैव सांख्यस्य पुनस्तत्त्वे महाग्रहः // 56 // अम्बडं प्रत्यवाक् पुज्यः सांख्यं स्यात् बिन्दुमात्रकम् / पयोराशिं न जानाति भवान कूपस्य दर्दुरः // 57|| यतः-अविदितपरमानन्दो वदति जनो विषय एव रमणीयः / तिलतैलमेवमिष्टं येन न दृष्टं घृतं क्वापि // 5 // अपि च--विपुलहृदयाभियोगे खिद्यति काव्ये जडो न रखें स्वे / निन्दति कुश्चककारं प्रायः शुष्कस्तना नारी // 6 // पुनः-संतप्तायसि संस्थितस्य पयसो नामापि न ज्ञायते, मुक्ताकारतया तदेवनलिनीपत्रस्थितं राजते। स्वातौ सागरशुक्तिसंपुटगतं तदज्ञायते मौक्तिकं, प्रायेणाधममध्यमोत्तमगुणो संवासतो जायते // 16 // पश्य जैनमते प्रातः केवलज्ञानभास्करे। वस्तुवत्तत्र दृश्यन्ते तत्त्वानि नव नान्यतः // 61 // उक्तश्च-जीवाऽजीवा पुन्नं पावासवसंवरो य निजरणा / बंधो मुक्खो य तहा नवतत्ता हुँति नायव्वाः // 6 // एतद्विवरण दुग्धपानीयव्यक्तिवद् गुरुः / चक्रे वक्रेतरमना राजहंसो यथा तथा // 63 // प्रतिबोधमिति श्रुत्वा प्रसन्नो लघुकर्मतः। मिथ्यात्वशल्यनिर्मुक्तः सञ्जातोऽम्बड श्रास्तिकः // 64 // सादरं पूज्यमाकार्य स्वगृहं प्रत्यलाभयत् / पुनः प्ररूपयामास सम्यवत्वं तस्य योगतः // 65 // // 104 //

Page Navigation
1 ... 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116