Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 114
________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 110 // मुत्तुं दंसणदारं न पवेसो धम्मनयरम्मि / देइ लहुं मुक्खफलं दंसणमूले दढंमि धम्मदुमे // 15 // नंदइ वयपासाओ देसणपीढंमि सुपइदंमि / सम्मत्तमहाधरणी आहारो चरणजीवलोगस्स // 16 // सुयसीलमणबरसो दंसणवरभायणे धरई / मूलत्तरगुणरयणाणं सम्मत्तं अक्खयनिहाणं // 17 // वर्द्धमानं जगद्भानुवर्द्धमानजिनान्न तत् / प्रवर्द्धमानसम्यक्त्वं यदस्ति सुलसास्त्रियाः ? // 18 // उक्तश्च-धन्ना सलाहिणिज्जा सुलसा आणंद कामदेवा य / जेसिं पसंसइ भयवं दङ्वयत्तं महावीरो // 16 // अम्बडस्य मुखात् श्रुत्वा वैशाल्यां वीरतीर्थपम् / अभिगम्य नमश्चक्रे सुलसा पञ्चषान क्रमान // 220 // उक्तञ्च-अणुसो य सुद्दो लोगो, पडिसो य आसवो सुविहियाणं / अणुसो उ संसारो पडिसो उ तस्स उत्तारो॥२१॥ | कृष्णचित्रलतातुल्यां सुलसां हृदि भावयन् / सम्यक्त्वं पालयामास त्रिधा शुद्धया ततोऽम्बडः // 22 // चिरं भुङ्क्त्वा सुखं राज्यं ददौ मह्य विरागवान् / द्वात्रिंशद्रमणीमुक्त्वा धर्मध्यानपरोऽभवत् // 23 // | काले संलेखनां कृत्वा मत्पिता धर्मलेश्यया / स्वर्गगामी बभूवाशु प्रांशुलभ्यं फलं तरोः॥२४॥ द्वात्रिंशदयिता भर्तृ-विरहातुरमानसाः / दिवं जग्मुर्जनन्यो मे स्त्रीणां रमणजीवनम् / / 25 // सौभाग्या येऽपि ते जग्मुर्भाग्यहीनोऽस्मि तस्थिवान्। राज्यं निर्गमितं सर्वं विना पुण्यं न तिष्ठति // 26 // ||110 //

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