Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 85
________________ अम्बड चरित्रम् षष्ठ आदेश: // कुर्वन्तीष्वपि निःशङ्क विनोदं तासु तावता / अम्बडोऽयं सहुङ्कारं कृत्वा सहासमुत्थितः // 10 // || अरेकारे निगो ति त्रासितास्तेन दूरतः। अन्योन्यं सभयं प्राहु-रकाले कस्य रौद्रवाक् // 11 // स्थित्वा क्षणान्तरं कन्या चन्द्रकान्ता जजल्प तम् / 1 // कोऽस्ति मध्ये निशीथेऽस्मिन् किनामा कठिनस्वरः // 12 // अम्बडः प्राह हे बाले ! पश्चिमात्पथिकोऽस्म्यहम् / पञ्चशीर्षकनामाहं प्रासादे कोणके शयी // 13 // पुत्रिकाः प्राहु रे कान्ते ! सोमेश्वरसुतां प्रति। अद्य वासवदत्ताया मिलनाथं हि गम्यते // 14 // श्रात्मनां सङ्गमे तस्याः सञ्जाता दिवसा घनाः / सहायो वीक्ष्यते कोऽपि गृह्यते पथिको ह्यसौ // 15 // एकाहं सममस्माभिः पञ्चशीर्ष ! समेष्यसि / सारथिर्भव पाताले गमिष्यामो वयं ध्रुवम् // 16 // एष्यामि यदि मे वाञ्छा विद्यां दास्यथ हे स्त्रियः। प्रमाणीकृत्य तस्योक्तं ताः सर्वा बहिरागताः॥१७॥ आरूढा बालकक्रीडा-सदृशीं शकटीं च ताः। श्रपश्यदम्बडश्चित्रं विना वृषभयोजनम् // 18 // | आगच्छोपविशात्रैव वदति स्माम्बडस्तदा / विना धुर्यं कथं यानं तदुक्तं किं करिष्यसि // 16 // // 8 //

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