Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 87
________________ अम्बडचरित्रम् षष्ठ आदेश: // 3 // उपविष्टाऽस्ति नागश्री-श्चञ्चचतुरिकान्तरे / ततः सोत्कण्ठहृदया गतास्तास्तत्र सोऽम्बडः // 11 // | नागश्रिया समुत्थाय सर्वासां स्वागतं कृतम् / चन्द्रकान्ता च पत्राणि तदाऽयाचत सारथिम् // 12 // | क्षिप्त्वा तत्फलचूर्णं च वालयित्वा सबीटकम् / अप्पयच्चन्द्रकान्तायाः कान्ताया इव वल्लभः॥१३॥ | बीकटं चर्वयित्वा च प्रीत्या विप्रसुता मनाक् / ददौ नागश्रिया हस्ते तत्क्षणं भक्षितं तया // 14 // नागश्री रासभी जाता व्याकुला विप्रनन्दना। चतस्रः तावता यन्त्रनिहताः श्वेतकम्बया // 15 // निहत्य सारथिः पश्चा-दारुह्य शकटीं ययौ / पुरे चतुष्पथे चित्रं लोकानामुदपादयत् // 16 // नागश्रीर्गर्दभी जाता मृगी चान्या चतुष्टयी। पाताले तुमलो जातः कुटिलं केन निर्मितम् // 17 // सर्वत्र शोधनं कर्तु लग्ना पातालयोषितः / न ज्ञायते परं कोऽपि तावदासवदत्तया // 18 // कथितं चन्द्रकान्तायाः सारथिस्ते न दृश्यते / शकटी सापरं नास्ति स कृत्वा कुटिलं ययौ // 11 // यतः-तां भल्ला भल्लि मकरइ जां भल्ला न मलंति / भल्ला नई भल्लां मिलइ तु भल्ला काइ करंति // 120 // तद्धर्त्तचेष्टितं ज्ञात्वा किं कर्त्तव्यमनास्ततः / पश्चान्मृगीचतुष्कं तत् गतं कर्मकरोडिके // 21 // // 83 //

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