Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् सप्तम आदेश: // 86 // अतिक्रान्तः पथः सोऽपि सोपारसविधं ययौ / नानाविधतरुयामा-भिरामारामशोभितम् // 5 // M नारिंग जंबीरक बीजपूर-राजादनीसुन्दरनालिकेरी। हन्तालतालो सहकारशाली प्रदेश एवंविध आविभाति // 6 // वृक्षावली खाधफलानि वीक्ष्य, कां नालिकेरी गतवान् ग्रहीतुम् / यावत्स पाणिं क्षिपतीह तावत् , शाखास्थशाखामृग एनमाह // 7 // अहो पूरुष ! त्वं वचो यन्मदीयं, समाकर्णय प्राक् ततस्तं गृहाण / भवानन्यथा मृत्युमाप्नोति साधोऽ-ब्रवीदम्बडस्तकपे ! कारणं किम् // 8 // X| उवाच वानरो वीर ! शृणु त्वं पश्य सन्मुखा / दृश्यते वाटिका तस्याः पायें स्यात् यमपर्वतः // 6 // | तत्पृष्ठे सहकारोऽस्ति फलं तस्य समानय / यथाफलं त्वमाप्नोसि श्रुत्वेति तत्र सोऽगमत् // 10 // | अतिपदिस्मितः पाणिः सहकारफलग्रहे / उच्चैरुच्चैवजेच्छाखा-चूतस्योपरि सोऽचटत् // 11 // तावत्स चाम्र उड्डीनो व्योम्ना बहुलकानने / गवाऽस्थात्तत उत्तीर्णः पश्यति स्मेति सोऽम्बडः // 12 // // 86 //

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