Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् // 31 // शिवरेण तत् जग्धं न चलेन भवितव्यता / आधानं कर्मयोगेन दधौ विद्याधराधिपः // 23 // उक्तश्च-"उदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्निः / सप्तम विकसति यदि पद्म पर्वताग्रे शिलायां, न चलति विधियोगात् भाविनी कमरेखा // 24 // आदेश: तदैव लजितो राजा स्वयं समनि तिष्ठति। विततान जने वार्ता छन्नमतन्न तिष्ठति // 25 // उक्तश्च-चंदकला छुरमुडी चोरीरमियं च छन्नपावाई / एए गोविजंता, जंती य दिने पायडा हुँति // 26 // सप्तमासादनूभूता भूपस्य जठरे व्यथा। न रतिर्भोजने क्वापि न शय्यायां न केलिषु // 27 // ॐ स्वरूपं तस्य भूपस्य न भूतं न भविष्यति / महत्या पीडया जाताः प्राणाः कण्ठगता इव // 28 // सम्भूय खेचराः सर्वे विमृश्यन्ति परस्परम् / अजनिष्ट जने लज्जा वक्तु नो याति कस्यचित् // 26 // ___ महत् कौतुकं यत्त्रपाकारि लोके, यदाधानमासीन्नरस्योदरे हि / जनाः प्राहुरित्थं मिथश्चित्रवार्ता, न कर्णे श्रुतं कूपरे कूर्चमेव // 30 // श्रा एकेन कथितं भो भोः-चिन्ताजाले पतन्तु मा / स एकः सेव्यते स्वामी यत्तत्कष्टाद्विमुच्यते // 31 // || ||1 // उक्तश्च-कार्य शर इव मूदं प्रथमं परिमोचयन्ति ते विरलाः / कङ्कतकदन्तका इव लब्धप्रसराश्च तेऽपि घनाः // 32 //

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