Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 103
________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेश: // 8 // अन्यस्मिन् दिवसे राज-तनया सुरसुन्दरी / वसन्तखेलने याता सखीजनवृता बहिः // 4 // कूपकण्ठे समासीने लभ्यते वारकः कदा / अम्बडश्चिन्तयन्नेव-मन्वगात् राजकन्यकाम् // 5 // राजकन्या समासीना सहकारतरोस्तले / संस्मरन् मोहिनी विद्यां स योगी तत्र तस्थिवान् // 6 // साश्चर्यं योगिनो रूपं दृष्ट्वा मोहमुपेयुषीम् / आशीर्वचनमायाता-मादिशत् प्रति तां नताम् // 7 // | अङ्गवङ्गकलिङ्गादि-कुरुकोशलजाङ्गलाः / मरुमण्डलकाश्मीर-लाट कर्णाट मालवाः // 8 // काशी-गुर्जर-सौराष्ट्र-मेदपाटतिलङ्गकाः / इत्यादिदेशवा” च पारेभे सुखदायिनीम् // 6 // | एवंविधकथां कुर्वन्नुत्थायान्यत्र स व्रजेत् / तावदाजसुता तस्य प्रेमबद्धा तमन्वगात् // 11 // न तिष्ठत्यनुगच्छन्ती वार्यमाणा सखीजनैः। भूपाय कथितं सर्वं कन्यावृत्तं यथास्थितम् // 11 // (सकोपं भूपतिः प्राह-योगीरेकोऽस्ति दम्भधीः / ईदृशः कपटी यस्तु मत्सुतां विप्रतारयेत् // 12 // धावत 2 रे रे धावन्ति स्म च ये भटाः। ते सर्वे मोहनं प्राप्ता आसीना उपयोगिनम् // 13 // ततो राज्ञा स्वसेनानीः प्रेषितस्तं प्रति क्रुधा / आपतन्तं तकं ज्ञात्वा वेतालो भूय सोऽभ्यगात् // 14 // KI188 //

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