Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 102
________________ अम्बडचरित्रम् सप्तम आदेशः दृष्ट्वा विद्याधरैः सोऽपि सत्कृतो बहुमानतः। अष्टाह्निकां जिनस्तात्र-पूजानृत्यमकारयत् // 13 // प्रक्षाल्य कूर्मदण्डं च तज्जलं पायितो नृपः / चूडामणिनिराबाधो जातो विद्यासमन्वितः // 14 // अभूजयजयारावः प्रभावः सोऽम्बडस्य च / चकार पारणं राज्ञी समं विद्याधराम्बडैः // 15 // उत्कृष्टं मङ्गलं धर्म उत्कृष्टं जिनपूजनम् / उत्कृष्टं देवसानिध्यमुत्कृष्टं ब्रह्मणः सुखम् // 16 // | ततश्चूडामणी राजा पुत्री मदनमञ्जरीम् / अम्बडाय ददौ विधा-धनं विवाहपूर्वकम् // 17 // | अपूर्वानेकवस्तूनि चन्द्रकान्तमणीमयम् / यदत्तं धरणेन्द्रेण विष्टरं तस्य सोऽर्पयत् // 18 // || स्थित्वाऽम्बडः कियत्कालं मुस्कलाप्य नृपं ततः / स्वकीयपरिवारेण ययौ सोपारपत्तने // 11 // सर्वसैन्यं वने मुक्त्वा योगिरूपेण निर्ययो / पुरमध्ये समागत्य योगेन रञ्जयेजनान् // 10 // सर्वोऽपि स्वस्वकार्यार्थी चमत्कारमनुव्रजेत् / अम्बडोऽपि हि पाखण्डं मण्डयेत्कार्यसिद्धये // 1 // स पुनर्भूपगेहस्य प्रवेशं लभते न च / स्वकार्यविषयोत्कण्ठः कालं नयति चिन्तयन् // 2 // | तावद्वसन्त आयात ऋतुराजो वनश्रिया / राजा च सकलो लोकः तत्र रन्तुगतो वने // 3 // KIE8 //

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