Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 97
________________ समप्त आदेश: | प्रसन्नः पुनरूचे सः कृपया धरणेश्वरः / प्रसूतिसमये भूप ! स्मरणीयः शुभङ्करः // 44 // अम्बड विद्याभृतां निगद्य ति स्वस्थानं धरणो ययौ। शिवङ्करस्य भूपस्य तथाऽगाद् गर्भवेदना // 45 // चरित्रम् भूपस्य विवृधे गर्भः पुरुषस्य हि लाञ्छनम् / नारीणां हर्षसन्दर्भो गर्भो भवति वृद्धिमान् // 46 // // 43 // || विद्याधरजनाः सर्वे हर्षिता हृदि विस्मिताः / उदकः कीदृशो भावी चिन्ताशल्येन पीडिताः॥४७॥ यतः-चिन्ता चिता उभे तुल्ये चिन्ता स्याद्विन्दुनाऽधिका | चिता दहति निर्जीवं चिन्ता जीवन्तमप्यहो॥४८॥ नव मासा अतिक्रान्ता एवम्भूतस्य भूभुजः / जन्मकाले स्मृतो भूयो द्रुतं धरण आययौ // 4 // श्रागतो धरणस्तस्य सुखप्रसवमातनोत् / अचिन्त्यमहिमा ज्ञेयो दिव्यशक्तिप्रमाणतः // 50 // प्रसूतस्तनयो दिष्टया दृष्टया यावद्विलोकितः / तावदाजा मृतो हन्त मन्तव्यः कृत्रिमो भवः // 51 // उक्तश्च-तित्थयरा गणहारी सुरवइणो चक्कि केसवा रामा / संहरिया ही विहिणा का गणणा इयर लोअस्स // 1 // क्वचित् वीणानादः क्वचिदपि च हाहेति रुदितम् , क्वचिदम्या रामा क्वचिदपि जरा जर्जरतनुः / क्वचिद्विद्वद्गोष्ठी क्वचिदपि सुरामत्तकलहः, न जाने संसारः किममृतमयः किं विषमयः // 52 // // 6 //

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