Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 91
________________ अम्बड चरित्रम् आदेशः // 7 // अम्बडो वचसा तस्याश्चन्द्रकान्तासमन्वितः। ययौ तत्र पुरे रात्रौ तद्वापीजलपानतः // 51 // निजरूपेण तां चक्रे वक्रेतरमनाः स च / हर्षदण्डं समयेति तया नागश्रिया वृतः // 52 // लोके बभूव नो याव-चतुष्कं मङ्गलभ्रमः / तावत्कौमार्यमाचख्युवरवध्वोः शतं गृहम् // 53 // एवं वासवदत्ताऽपि तं व सदृशं वरम् / पुण्येन प्राप्यते सर्व मिलन्ती श्रीमिलत्यपि // 54 // अम्बडः प्रत्यगाच्छीघ्रं पातालात्तालमेलतः। आगत्य तत्पुरे भूप-मापप्रच्छ पुरोधसम् // 55 // भुञ्जानः सप्त सौख्यानि सप्तपत्नीसमन्वितः / ततो भोजकटद्रङ्ग सोत्कण्ठं च गतोऽम्बडः // 56 // सुस्थानवासः सुकुलं कलत्रं, पुत्रः पवित्रः स्वजनानुरागः।। न्यायाच वित्तं स्वहितं च चित्तं, सुस्वामिता सन्ति सुखानि सप्त // 27 // उक्त्वा समरसिंहस्य नीत्वा रत्नवतीप्रियाम् / दण्डद्वितयसंयुक्तो ययौ रथपुरेऽम्बडः // 5 // सर्वार्थशङ्करं दण्डं हर्षदण्डसमन्वितः / अग्रे गोरखयोगिन्या डुढौके प्रणनाम च // 51 // हे अम्बड ! महासत्त्व वीर ! त्वं पृथिवीतले / उक्तं गोरखयोगिन्या सुखं भुत्व निरन्तरम् // 16 // | // 7 //

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