Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ पष्ट आदेश: तदा तव मृगीरूप-मपाकुर्वे च साऽवदत् / कथं जानासि हे वीर ! तं दण्डं मम पार्श्वगम् // 14 // अम्बड जाने गोरक्षयोगिन्या-श्चमत्कृत्याऽऽह विप्रजा। अङ्गीकुरु पुरा नाथ ! मामेताश्चतुः पुत्रिकाः // 41 // चरित्रम् जीवितेश ! चिरं जीव यत्राहं तत्र दण्डकः / सन्जीकुरु स्वरूपेण मृगीरूपेण लज्यते // 42 // // 86 // | कथं विगोपिता लोके किमस्माभिविनाशितम् / यदि गोरखयोगिन्या मान्योऽस्माकमपि प्रियः॥४३॥ | कृपां कृत्वाऽम्बडस्तस्मात् प्रसादादानयच्च ताः। त्रिदिनी ध्यानमाधाय रक्तकम्बां करेऽग्रहीत् // 44 // पञ्चशीर्षस्तया हत्वा मन्त्रोच्चारणपूर्वकम् / तासां च चन्द्रकान्ताया मृगीरूपमपाहरत् // 45 // ततश्चतसृभिस्ताभि-दिव्यरूपाभिरम्बङः / वृत्तो लोकसमक्षं यः सर्वार्थसिद्धिदण्डभृत् // 46 // पुरोधा मुमुदे राजा निजचित्ते विसिष्मिये / तादृग विद्याधरं वीक्ष्य तस्मै राजसुतां ददौ // 47 // प्रतिपन्नो वचःपालो भूपालोऽपि पुरोहितः / अम्बडं प्रीणयामास पञ्चपत्नीसमन्वितः॥४८॥ श्रन्यदा चन्द्रकान्ता तं कान्तं काले व्यजिज्ञपत् / पाताले स्वसखीलोके दृश्यतेऽत्यसमञ्जसम् // 4 // लज्जते तेन हे नाथ ! नागश्रीस्तादृशी खरी / तथा करोतु रूपेण सुखेन जायते सखी // 150 // 86 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116