Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 88
________________ षष्ठ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 84 // प्रासादेऽस्थात् त्रिकं मृग्या चन्द्रकान्ता मृगी पुनः / सोमेश्वरगृहे याता धूर्त्तवञ्चनलजिता // 22 // | लोकाः कौतुकिनस्तत्र पश्यन्ति च हसन्त्यहो / आरूढः शकटीं याति विनाधुर्यो महानयम् // 23 // चन्द्रकान्ता मृगी जाता सोमेश्वरदिजाङ्गजा / तस्या वृत्तान्तमाकण्ये राजा मनसि पीडितः // 24 // पुरोहितस्य पूज्यस्य सुता जाता मृगी हहा।। विदग्धः कोऽपि मुग्धोऽस्याः यः करोति प्रतिक्रियाम् // 25 // विज्ञाय पौरलोकोक्त्या तादृशं पञ्चशीर्षकम् / राजा विस्मयमापन्नो गत्वा तं प्रत्यभाषत // 26 // हे सिद्धपुरुष त्वं च पुरमध्ये चतुष्पथे / शकटीं च विना धुर्यो चालयिष्यसि वायुवत् // 27 // कस्त्वं क्रीडसि देवो वा सिद्धविद्याधरोऽथवा / प्रसादं कुरु मौनेन स्थित्वा स क्षणमब्रवीत् // 28 // श्रहं विद्याधरो राजन् ! विद्यया क्रीडयाम्यहम् / ततो राजादिलोकोऽस्य पादयोरलगत्तराम् // 21 // स्वामिन् ! स्वकीयरूपेण कृपया प्रकटीभव / क्षणं स्थित्वाऽम्बडश्चक्रे दिव्यरूपं निजं तदा // 13 // असौ विद्याधरः सत्यं विचिन्त्येति नृपोऽवदत् / अहो त्वं सिद्धपुरुषः परकार्ये सुरद्रुमः // 31 // // 4 //

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