Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 86
________________ अम्बड चरित्रम् आदेशः // 82 // तत्रारूढस्य तदाक्यात् तत्करे जोत्रमर्पयत् / असौ यन्ता न सामान्यो-भयमस्यास्ति नात्मनाम् // 10 // भणित्वा मन्त्रमेताभि-रुक्त रे शकटि ! व्रज / साऽचलद्वायुवेगेन रङ्गन किमु तत्पथि // 1 // अर्द्धमार्गे गता यावत् स्तम्भिता तेन विद्यया / न चलेप्रेरिता ताभिः ज्ञातं सारथिकारणम् // 2 // उवाच सारथिरियं विद्या मे यदि दीयताम् / तदा चलत्यसौ नूनं नान्यथा सत्यमेव च // 3 // | विमृशन्ति मिथः सर्वाः किं युक्त समयो बली। चिन्तयित्वेति तस्मै ता ददुर्विद्यां तदर्थिताम् // 4 // ततः सारथिना मन्त्रैः शकटी चलिता रयात् / साऽपि वासवदत्ताया गृहेऽगादिव मोहिता // 5 // एषो ह्यधिक श्रात्मभ्यो दृश्यते ता अचिन्तयत् / स्वविद्या जगृहे येन सिद्धेनार्द्धपथे यतः॥६॥ | तासां सन्मुखमागत्या-मिलदासवदत्तिका / कुशलप्रश्नसंश्लेष-सुधापल्लविता मिथः // 7 // दत्तानि नागपत्राणि तया वासवदत्तया / सर्वाणि फलपुष्पाणि सारथेस्ताः करेऽपयत् // 8 // तं दृष्ट्वा सविधे तासां पृष्टं वासवदत्तया। असौ कः पुरुषोऽपूर्वः ता ऊचुः पथिको ह्ययम् // 1 // तावदासवदत्ताया नागश्रीगृहतो मुदा / श्रामन्त्रणं समायातं स्वामिन्यायातु सत्वरम् // 110 // ||82 //

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