Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 83
________________ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 7 // हे नाथ ! मत्पितू राज्ये गम्यते तत्र निश्चितम् / भ्रातुः समरसिंहस्य वृत्तान्तं तस्य कथ्यते // 71 // / | प्रमाणं कथयित्वेति नीत्वा रत्नवतीं सह / गतो गगनमार्गेण तदुद्यानमवातरत् // 72 // | परितः पश्यति पुरं वेष्टितं बहुवैरिभिः / रत्नावत्याकथि स्वामिन् ! गोत्रिणो नवशत्रवः॥ 73 // एते नृपं मृतं श्रुत्वा ग्रहीतुमागताः राज्यम् / निर्जितास्ते विलोक्यन्ते स्वामिस्तव बलं महत् // 7 // अम्बडः प्रेरितः पत्न्या करे नीत्वा च मुद्गरम् / दधावे गगने कृत्वा रौद्र रूपं भयङ्करम् / / 75 // दृष्ट्वा तं राक्षसप्रायं भीता नष्टा दिशोदिशम् / जितं 2 नभो वाणी समुत्पन्नाः समन्ततः // 76 // प्रतौलीमुत्कला जाता रत्नवत्यन्तरे गता। भ्रातुः समरसिंहस्य मिलिता रोदिति स्म सा // 77 // पितुःस्वरूपमाकर्ण्य स्वसारं साश्रु रब्रवीत् / किं करोमि नरः प्रौढः प्रेर्यमाणः स्वकर्मणा // 7 // निवर्तयित्वा तच्छोकं पप्रच्छ भगिनीं वरम् / शत्रुजेता स कुत्रास्ति साऽऽहोद्याने स्वसुः पतिः // 7 // मुदा समरसिंहोऽपि सोत्सवं सन्मुखं ययौ / अम्बडं बहुमानेन निजावासे समानयत् // 8 // अम्बडः प्रीणितस्तेन राज्ये समरसिंहकम् / अस्थापयद् रत्नवत्या सहितस्तत्र तस्थिवान् // 81 // KI // 7 //

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