Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ षष्ठ अम्बडचरित्रम् आदेश: // 77 // वाचा भ्रष्टो भवान् भावी वचनं जीवनं सताम् / तस्मिन् याते मृतप्रायः कायवानपि तादृशः॥४॥ यतः-उत्तरदिशि नवि उन्नईइ उन्नईइ तु वरसेइ / सुपुरिसवयण न उच्चरइ उच्चरइ तु करेइ // 5 // अस्मदीया पुनर्विद्या तां विना नैव सिद्धयति / योगिनं कथ्यते नैव कथ्यते चेद्विधीयते // 51 // | यदि त्वं शोभानाकाङ्क्षी तदा पालय मे वचः / अन्यथा यामि श्रुत्वेति सभयं तां नृपोऽग्रहीत् // 52 // ततो राजा सुतायुक्तो जगाम योगिना समम् / श्रीपर्णी च नदीतीरे गिरिस्तत्र मठी भवेत् // 53 // पार्वे स्थाप्य नृपं योगी वने गत्वा समागमत् / कम्बाद्वितयमानीय वह्निकुण्डं चकार सः / / 54 // आक्षिपेत् मां मठीमध्ये हताऽहं श्वेतकम्बया। मृगीभूतं नियन्त्र्येति स ययौ वह्निकुण्डके // 55 // K ततो होमादिकं कर्तुं प्रवृतः सोऽपि वीक्ष्य तत् / यः किंकर्तव्यतामूढः प्रोढः किं कुरुते नृपः॥५६॥ यतः-अहगिलइ सिडइ पिट्ट', नहु गिलइ गलंति नयणाई / अहविसमा कजगइ अहिणा छच्छंदरी गहिया // 57 // मन्त्रोचारं पुनः कुर्वन् समाप्ते होमकर्मणि / योगी जजल्प राजानं, गृहाण गुटिकात्रयम् / / 58 // वह्निकुण्डे त्रयं हुत्वा स्वयं नामय मस्तकम् / त्रिवारं प्रणमन् बहि विद्या सिद्धयतु योगिनः // 51 // // 77 //

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