Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 80
________________ पष्ठ आदेश: राजसूत्रधरास्ते हि भक्त्या भूपं व्यजिज्ञपत् / स्वामिन् ! विपर्ययो जातः सहस्रचक्षुषस्तव // 40 // अम्बड ईदृशः कुटिलो योगो धार्यते नैव कोविद ! मुखे मिष्टो मनोदुष्टो कामिनो दुर्जना इव / / 41 // चरित्रम् | उक्तश्च-जिह्व कैव सतां मुखे फणभृतां स्रष्टुश्चतस्रो मता, ताः सप्तैव विभावसोनियमिता षट्कार्तिकेयस्य च / // 76 // पौलस्त्यस्य दशा भवत्फणपतेजिह्वा सहस्रद्वयं, जिह्वालक्षसहस्रकोटिनियता नो दुर्जनानां मुखे // 42 // हन्त रत्नवतीं पुत्री कथं तां ग्राहयेत् सह / ज्ञेयः कपटगर्भोऽयं प्रजापाल ! निहालय // 43 // 4. राजा जगाद सत्यं भो युष्मदीयं वचो हितम् / तस्य वाचा मया दत्ता का पृच्छा जलपानतः॥४४॥ यतः-दिग्गजकूमकुलाचल-फणिपतिविधृतापि चलति वसुधेयम् / प्रतिपन्नममलमनसां, न चलति पुंसां युगान्तेऽपि / / 45 // | इति चिन्तयतो राज्ञः तत्सन्ध्यायां नरेश्वरः / आयातु कथयन्नैवं स योगी शीघ्रमागतः // 46 // वत्सलः प्रतिपन्नेषु सज्जो गन्तुमभून्नृपः / योगिना जल्पितो राजन् ! क्व पुत्री सहगामिनी // 47 // | नरेन्द्रः प्राह योगीन्द्र ! सा लध्वी किं करिष्यति / क्षमोऽहं सर्वकार्येषु जगौ योगी सुनिष्ठुरम् // 48 // // 76 //

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