Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 74 // अकलौ कलिङ्गदेशे पुरं भोजकटाभिधम् / वैरसिंहनृपस्तत्र प्रियाऽस्य कमलाभिधा // 22 // / तयोरेकः सुतः प्रौढो नाम्ना समरसिंहकः / सुता रत्नवतीत्यस्मि श्रूयतां वृत्तमग्रतः // 23 // तत्राहं विपरीतशिक्षितहयं चारुह्य यामि द्रुतम् , नित्यं पारदपूरिते डमडमे कूपे तदामन्त्रणे। पार्वे कुत्र ममैव रूपमसमं दृष्ट्वा स्मरातॊऽभवत् , योगी सोऽपि समागमत् नृपसभामध्येऽन्यदा चित्रकृत् // 24 // रम्भास्तम्भं सभामध्ये प्रकटं कृतवान् स च / आसनादिप्रतिपत्त्या-ऽत्यर्थं भूपेन सत्कृतः // 25 // कन्थामुद्रादिकर्योगा-भरणैर्भूषिताङ्गकम् / ईदृशं योगिनं दृष्ट्वा चमच्चक्रे सभाजनः // 26 // उपविश्य स्वयं पीठे-ऽध्यात्मसाधनमाश्रयेत् / अकलं योगिनो गेहं स(आपरं तादृशो नहि // 27 // चच्चरे चचरे रामः पर्वते पर्वते शिवः / शुकवत्तत्त्वतो नैव कालज्ञानं प्रकाशयेत् // 28 // राजा पप्रच्छ योगीन्द्र ! भवान भ्राम्यति भूतले / किं दर्शय चमत्कारं दर्शयामिति सम्प्रति // 26 // // 74 //

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116