Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 76
________________ अम्बड चरित्रम् आदेश: // 72 // सोमेश्वराभिधो विप्रः पुरोधास्तस्य धार्मिकः / गृहे तस्यास्ति सर्वार्थशङ्करं दण्डमानय // 4 // तथेत्यस्या वचो नीत्वा सखीवत्सहसोऽचलत् / व्रजतः पथि तस्यैका समागान्महती नदी // 5 // | तत्र चित्रं जलस्योर्ध्वं रम्भास्तम्भविनिर्मिताम् / कदलीदलसच्छिन्नां मठीमेकां ददर्श सः // 6 // तन्मध्ये हरिणी चैका स्वर्णशृङ्खलयन्त्रिता / तस्याः पार्वे स्थितो योगी व्यञ्जयेद्रातमुन्मुना // 7 // तं रक्षकमिवान्विष्य दध्यौ किमपि कारणम् / ज्ञास्यते पुनरेषो हि हन्तव्यो नैव पातकम् // 8 // सत्त्वे सिद्धिर्विचिन्त्येति कृतवान् रूपमुक्कटम् / तं धृत्वा गगने निन्ये विद्यया स्तम्भिता मठी // 6 // यतः--तां फणिंद फणमंडप मांडइ, जां पडइ गरुडतणइ नवि फांडइ / . ताम हस्ति मदिमावत गाजइ, जाम केसरि नाद न वाजइ // 10 // मल्लयुद्धं तयोर्जात-मम्बडो बलवत्तरः / आस्फाल्य पर्वते तेन हतो योगी हि पातकी // 11 // जे योगी हूँतु सपराणु अंबडि कीधु तेनिपराणु।। परवंचक कहु किमऊबलइ पापी पाप आवी नइ मीलइ // 12 // जयं प्राप्यागमन मठयां पश्यति स्वर्णपूरुषम्। श्वेता रक्ता च कम्बे हे कुण्डलं चन्द्रमण्डलम् // 13 // // 72 //

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