Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेशः // 64 // यत:-"कस्सवि कोइ न इट्ठो इक्कं चिय इट्ठ अप्पणो कज्ज / कजाविडियाण परं परसंसारियाण सव्वे वि // 63 // उक्तञ्च-न गंगा गांगेयं सुयुवतिकपोलस्थलगतं, न वा शुक्तिमुक्तामणिरुरसिजा स्वादरसिकः / न कोटीरारूढः स्मरति च सवित्री मणिचयः, ततो मन्ये विश्वं स्वसुखनिरतं स्नेहविरतम् // 64 // ईदृशं चिन्तयित्वेति विरता कामभोगतः। विद्यया व्योमगामिन्या गङ्गातीर्थमगां श्रिये // 65 // जगृहे स्नातया तत्र मया मस्त्रासदर्शनम् ? / ततः प्रभृति सर्वत्र भुवि चित्रं निरीक्ष्यते // 66 // | एवं नानाविधाश्चर्यं पश्यन्तीह समागता। उद्घाटितं मया वक्ष-स्तवाग्रे वं वद स्वकम् // 67 // परपंसो मुखं वत्से ! कथं वं नैव पश्यसि / अनिष्टं केन सञ्जातं तदिष्टं हि मृगीदृशाम् // 6 // राजकन्याह हे मात-स्तातस्य वचनं ह्यदः। ज्ञायते त्वयि दृष्टायां प्रतिज्ञा पूरिताऽभवत् // 6 // | तादृशं मिलितं पात्रं पात्रं विद्यारसस्य च / विद्यां गृहाण सार्याह-किं कायं ममविद्यया // 70 // यतः-अयाचितानि दानानि देयानि किल भारत ! / अन्नं विद्या च कन्या च त्रितयं देयमर्थिने // 71 // पुनर्दथ्यो महासिद्धा सत्यमाभानको जने / रसे दानं रुषा घातो रसे याते न तु द्वयम् // 72 // कन्या प्रोक्तस्ववृत्तान्ता तस्यै विद्यां ददौ बलात्। श्रागच्छन्तीं श्रियं विद्यां को दक्षः प्रतिषेधयेत्॥७३॥ // 64 //

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