Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ पश्चम आदेशः | नत्वा कन्या जगौ मात-निदृष्टया विलोकय / एतद्विद्यायुतो भावी वरो वा न भवेन्मम // 7 // अम्बड चरित्रम् प्रसीद वद भो आर्य ! कार्येऽस्मिन् मा विलम्बय / दध्यौ सा हृदि मार्जार-मुखं पतितमूषकम् // 7 // तन्न्यायानाटयित्वाथ ध्यानाडम्बरयोगतः / सहासमाह हे कन्ये ! मन्येऽहं दृश्यते वरम् // 7 // // 65 // मध्ये स्वल्पदिनं समेष्यति वरोश्चात्रैव ऋद्धयान्वितः, कन्या हर्षितमानसाह स कुतोऽभिज्ञानतो ज्ञास्यते॥ | कृत्वा ध्यानमवोचत प्रियमयं ते पुष्पनीविस्त्रिया, हस्ते कञ्चुकमद्भुतं कुसुमं यः प्रेषयेत्सप्रियः // 77 // | व्रजामि स्वस्ति ते तां च कन्या रक्षति साग्रहम् / नोतिष्ठल्लिङ्गिनां प्रायः स्थितिरेकत्र नोचिता // 78 आपृच्छय कन्यका सैव ययौ शीघ्रगतिस्ततः / पुनरप्यम्बडो भूत्वा गतो देवकपत्तने // 7 // | उत्तीर्णो राजकीयायाः पुष्पजीविस्त्रिया गृहे / मोहिनी विद्यया तत्र तनुते जनमोहनम् // 8 // मालाकारसुता तन्वी देमती नाममोहिता / दृष्ट्वा तत्सुभगं रूपं मातरं प्रति साऽवदत् // 81 // मातरेनं मया साकं सुभगं परिणायय / प्रमाणमिति मात्रोक्तं पुनरूचेऽम्बडं प्रति // 2 // 1| वरं वरयते कन्या तत्सत्यं तव दीयते / अहो सौभाग्यभण्डार ! चमत्कारं हि दर्शय // 83 / /

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