Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बडचरित्रम् पञ्चम आदेशः // 67 // द्वितीये दिवसेऽभूतां शृगालौ शब्दकारिणौ / तृतीये दिवसे नग्नौ पुरे भ्रमणशालिनौ // 15 // | चतुर्थे दिवसे रक्षा-रेणुकई मलेपिनौ / कौतुकं केऽपि पश्यन्ति दूयन्ते केऽपि चेतसि // 16 // पञ्चमे दिवसे राजा नृत्यति स्म चतुष्पथे। मर्दलं वादयेन्मन्त्री तस्मादेवं ध्वनिर्भवेत् // 17 // राजा च सचिवो भावी गई भो गर्भवागिति / एके हसन्ति शृण्वन्ति कौतुकं हि नवं नवम् // 18 // षष्ठेऽपि दिवसे राजा मन्त्री रोदति नृत्यति / बुम्बापातं च कुरुते सप्तमे दिवसे ततः॥ 11 // हतविप्रहतं दृष्ट्वा-ब्रवीदारामिकाम्बड ! / अहो वीर ! कुरु स्वस्थमतिदुःस्थं हि वजेयेत् // 10 // उक्तश्च-अत्याचारमनाचार-मतिनिन्दा हतिस्ततिः / अतिक्रोधः स्वयं हन्ति अति सर्वत्र वर्जयेत // 1 // ततोऽम्बडः प्रतोलीस्ता विद्यया व्यधित स्थिराः। जहर्ष पौरलोकोऽयं कोऽयं सिद्धपुमानिह // 2 // विज्ञाय तत्स्वरूपं हि प्रतिरूपं सुपर्वणः / सम्भूय राजवर्गस्तं प्रशस्तं प्राह सादरम् // 3 // अहो सिद्धनरत्वं हि प्रभुत्वं तव शोभते / राजानं च प्रधानं च कुरु वीर ! निरामयम् // 4 // अम्बडः कथयामास हं हो राजनरा यदि। राजानं च प्रधानं च निराबाधं करोम्यहम् // 5 // 1 // 67 //

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