Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 66
________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेश: // 62 // राजप्रतिग्रहोऽस्माक-मयोग्यो योगभेजुषाम् / भिक्षान्नमुचितं कन्ये ! मन्ये संसारमस्थिरम् // 42 // | धर्म एव सुखं कर्ता हर्ता सोऽपि विराधितः / जीवः खेदं मुधा चित्ते धत्तेऽन्यसुखवीक्षणात् // 43 // यतः-रे चित्त ! खेदमुपयासि कथं वृथा त्वं, रम्येषु वस्तुषु मनोहरतां गतेषु / पुण्यं कुरुष्व यदि तेषु तवास्ति वाञ्छा, पुण्यविना नहि भवन्ति समीहितार्थाः // 44 // तदाण्या रञ्जिता कन्या पण्डितां पृच्छति स्म ताम्। मातः! श्रावय ते भाग्यं वैराग्यं नवयौवने // 45 // पण्डिता प्राह हे वत्से ! मा पृच्छेर्भवचेष्टितम् / पूर्व रागस्मृतेर्लोपस्तपसो मे भवत्यपि // 46 // भूयोरपि पृच्छन्तीं तादृशीं वीक्ष्य रोहिणीम् / दध्यौ मार्जारिकाहस्ते सम्पूर्ण चटितं पयः // 47 // गल्लझलरि झाकारि कपोलकल्पनाऽधुना / कथं न क्रियते फल्गु-वल्गुवेलामवाप्य या // 48 // | विचिन्त्येत्याह सा वत्से ! मत्स्वरूपं तु पृच्छसि / अकथं कथयिष्यामि पुरस्ते भक्तिरुत्तरा // 4 // शृणु सूरीपुरस्वामी सूरसेनो नृपो जयी। तस्याहं पुत्रिका नाम्ना माणिकीजातमात्रतः // 50 // दैवयोगान्मृता माता दुःखतो बालपालनम् / सबलायुः प्रमाणेन प्रौढाऽभूवं च लालिता // 41 // // 62 //

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