Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ पश्चम अम्बर चरित्रम् // 6 // ततः सिंहपुरे शीघ्रमुद्याने तौ च जग्मतुः / अम्बडः कूटबुद्ध-याह ब्राह्मणं प्रति सम्प्रति // 21 // | अहो पृथक पृथग मध्ये नगरं गम्यते स्वयम् / विद्यया ग्रहणोपायः सोऽपि कार्यः पृथक् पृथक् // 22 // || आदेशः | यथा चटति कस्यापि विप्रः सत्यममन्यत / को वेत्ति कस्यचिचित्तं ययौ विप्रोऽन्यतोऽम्बडः // 23 // कः काष्ठकोटरं वेत्ति, मायावीहृदयं तथा। अम्बडः प्राग् प्रतोल्यां द्राक् प्राविशत्पुरमध्यतः // 24 // कृत्वा रूपविपर्यासं मठासीनी भवेच्च सः / कथयन्ती निमित्तानि पौरलोकेन वेष्टिता // 25 // माक्षिकं मक्षिका यदत् तदन्नागरिकस्त्रियः। नाटयन्तीं महाच्यानं परितस्तामवेष्टयन // 26 // तच्छु त्वा विप्रमागत्य तां पप्रच्छ तपस्विनीम् / मनश्चिन्तितविद्यायाः सिद्धिर्भवति वा न वा // 27 // विचिन्त्य साऽऽह हे विप्र ! तव कार्य न सिद्धयति / वालयित्वा मनः सोऽगात् दृष्ट्वा लाभ हि सोद्यमः॥ 28 // साऽभूत् सर्वत्र विख्याता ख्याता क्षितिपवेश्मनि / तां विज्ञाय निमित्तज्ञां राजकन्या समाह्वयत् // 21 // यतः-पाखण्डेन मही व्याप्ता गड्डरीयप्रवाहतः / स्वार्थे भ्राम्यन्ति सर्वेऽपि न लोकः परमार्थवित् / 30 // // 60 //

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