Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ चरित्रम् // 56 // उवाच पुत्रिका तात | मह्य किमपि दीयताम् / नृपो विद्यां ददौ तस्यै प्रशस्यैकहृदेऽवदत् // 10 // समाकर्णय हे वत्से ! विद्यामेतां मनोरमाम् / कस्यापि गुणिनः पुंसो न शिक्षयसि यावता // 11 // विहाय भ्रातरं तावत् परस्य पुरुषस्य च / न द्रष्टव्यं मुखं ह्यषा यस्य विद्या पुनर्भवेत् // 12 // तेन विद्यावता पुंसा कर्त्तव्यं पाणिपीडनम् / तत्पितुर्वचनं नीत्वा प्रतिज्ञां पालयेत्सुता // 13 // तपसा मरणं प्रापत्सा तत्पिता कालयोगतः / तभ्राता राज्यकर्ताऽस्ति पुत्री प्रौढा कुमारिका // 14 // पालयन्ती पितुर्वाक्यं पर्वते भवनेऽथवा / कदाचित्सा गुहायां च तिष्ठन्ती रोहिणी भवेत् // 15 // तत्राहं यामि हे पान्थ ! विद्याग्रहणहेतवे। अम्बडः प्राह हे विप्र ! विद्या का तव सम्भवेत् // 16 // यतः-"विनयेन विद्या प्राधा पुष्कलेन धनेन वा / अथवा विद्यया विद्या चतुर्थ नास्ति कारणम् // 17 // उवाच वाडवो विद्या मोहिनी वर्त्तते मम / तद्विद्यया गृहीष्येऽहं सः स्माह शृणु वाडव ! // 18 // दुर्लभं दर्शनं तस्या विद्या चटति ते कथम् / विप्रेण कथितं सत्य–मुपायः क्रियते किमु // 1 // अब्रवीदम्बडो विप्र ! गम्यते तत्र पूर्वतः / विद्याऽस्त्यक्षयलक्ष्मीनां कारिणी वर्त्तते मम // 20 // // 5 //

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