Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चरित्रम् पश्चम आदेशः // 61 // सा प्राह प्रेषिता दासी किं कार्य राजकन्यया / नत्वाह चेटिका मातः ! कुमारी चतुरा भवेत् // 31 // भवदर्शनसोत्कण्ठा भवद्वचनरागिणी। सदृशः सदृशाकाङ्क्षी शुभाशुभपरो जनः // 32 // उक्तश्च-मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति, गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरङ्ग / मूर्खाश्च मूर्ख सुधियः सुधिभिः, समानशीलव्यसनेषु सख्यम् // 33 // हंसा रच्चन्ति सरे भ्रमरा रच्चन्ति केतकीकुसुमे / चन्दनवने भुजङ्गा सरिसा सरिसेण रचन्ति // 34 // ईदृग्वचनचातुर्यात् हर्षिता सा ययौ ततः। अापतन्तीमिमां दृष्ट्वा कन्या सन्मुखमुत्थिता // 35 // राजकन्या तदा तृप्ता तदाशीर्वचनामृतैः / उत्ततार ततश्चित्तात् कदाग्रहविषं किमु // 36 // यतः-वाणी जेह तणेहिं फणिविसहरविस ओतरह / जेहिं न भेद्या तेहिं ते नर मार्नु ढाढसी // 37 // भेद्या ते नरभेदीइ अणरस किम भेदंति / सेलडी जमला सीचीई एरंड गल्या न हुँति // 38 // लगित्वा पादयो राज-कन्या पीठममण्डयत् / साशीर्वचनवदना प्रसन्ना समुपाविशत् // 31 // मिथः कुशलप्रश्नेन प्रीतिर्जातोभयोस्तयोः / भोज्याय रक्षिता तस्थौ सार्यिका स्वार्थसाधका // 40 // चर्वणस्य पृथक् दन्ताः दर्शनस्य पृथक् पुनः। श्रात्मनः सा निरीहत्वं पुरस्तस्याः प्रकाशयेत् // 11 // पमान सामना // 61 //

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