Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् // 51 // | तव स्वरूपमस्माक-मग्रे तेनाखिलं स्मृतम् / श्रायान्तु रूपिणीगेहे कुर्वन्तु मम वाञ्छितम् // 44 // साक्षिण्यः सन्तु मे तत्र मुञ्चामि स्तम्भितास्ततः / भिडवीराभिधो ह्येष-वरस्ते दास्यतीप्सितम् // 45 // KI, आदेशः अनेनैव वयं गाढं जडीकृत्य विडम्बिताः। प्रतिपन्नं यदाऽस्माभिः तदा मुक्ता जडीकृतात् // 46 // आगता कारणादस्मा-त्सामेतेन तेऽन्तिके / श्रुत्वेति रूपिणी भ्रान्ता प्राह बोत्कटमुत्कटम् // 47 // नाम्ना रे भिडवीर ! त्वं सत्यं कथय मे कथाम् / किमर्थं मां मुधा लोके दृष्टा पातयति स्फुटम् // 48 // अस्मादृशां बलं रात्रौ प्रभाते प्राणसंशयः। अञ्जलिस्ते स्वकीयत्वं रूपं प्रकटय प्रभो ! // 41 // त्वदर्शनेन हे वीर ! वशीभूतास्मि साम्प्रतम् / प्रसीद निजरूपेण प्रणामः पादयोस्तव // 150 // अम्बडः समयज्ञो हि संहृत्य छागरूपकम् / जातः सहजरूपेण दीप्यमानेन तत्क्षणम् // 51 // तं दृष्ट्वा मोहनं प्राप रूपिणी प्राह को भवान् / अब्रवीदम्बडो वीरः सिद्धोऽहं पुरुषः शुभे! // 52 // विश्वं गोरखयोगिन्याः प्रसादेन करे मम / दथ्यौ सा च न सामान्यः शक्तिमान्यो महानसौ // 53 // KI || रूपिणी प्राह हे सिद्ध ! वद किं वीक्ष्यते तव / अम्बडः स्माह हे भद्रे ! विना क्षुदे ण कर्णय // 54 // K

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