Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 54
________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् आदेश: | विष्वक् ताम्रमयो वप्रो विष्वक जलान्तखातिकाः। सप्तभूमिमितः पञ्च सहस्रसुभटेर्वृतः // 34 // | मध्ये मणिमया दीपाः स्थाने 2 ललध्वजाः। तस्मिन्नेवंविधे स्वर्णसौधे मर्कटिका भवेत् // 35 // (त्रिभिर्विशेषकम् ) अम्बडो वीक्ष्य तां बद्धां चित्ते विस्मयमाप्तवान्। किमिदं को गुणस्तस्याः सत्यमेषाय॑ते गुणैः // 36 // वायसः पञ्जरे स्वर्णे क्षिप्यते पान्थसूचनात् / तथैवंविधसौधेऽसौ मर्कटी गुणतोऽयंते // 37 // स्वदृष्टया सकलं दृष्टं ज्ञास्यते सर्वमुत्तरम् / तावदेकत्र मिलिता ताः सर्वा उपरूपिणीम् // 38 // | तया च सस्मितं पृष्टं सख्यो ! यूयमनीदृशः। छागीरूपाश्चतस्रोऽग्रे का छागी पञ्चमी पुनः // 3 // मुखमर्कटिकां दत्त्वा स्मित्वाताभिनिवेदितम् / भगिनि ! त्वं न जानासि यदस्मान् सखि ! पृच्छसि // 140 // विप्रतारयसि त्वं च किमस्मान स प्रति स्वसः ! / असौ पूर्वं त्वया दृष्टा वषे नो वेदम्यहं पुनः // 41 // रूपिण्याऽकथि सामर्ष रे रे दृष्टा मया कुतः / ततः सर्वाभिरुक्तं तत् सत्यमेषा वजा न हि // 42 // उग्रच्छागस्तवैवासौ माऽवद्य वद रूपिणि ! / स्वयं वेत्ति मुखे बषे न जाने विप्रतारणम् // 43 //

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