Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ अम्बड चतुर्थ चरित्रम् | आदेशः / / 88 // पुनस्तथैव रात्रौ ता मिलिताः करदीपिकाः। क्रीडन्त्यस्तम्भिता तेन च्छागरूपेण विद्यया // 23 // || चकितास्तास्तमित्याहु-महापुरुष ! को भवान् / अस्मान् लोके कथं दृष्ट्वा नाथ ! पातयसि स्फुटम् // 24 // | प्रातस्यिन्ति ये (चेत्) लोका वयं स्तम्भितविग्रहाः। मा विडम्बय भोऽस्मान् प्रसीद प्रकटीभव // 25 // || लजामहे वयं लोके वक्तव्यं तव तदद / मुश्च मुञ्च वयं दीनाः पादयोः पतितास्तव // 26 // | अजरूपोऽम्बडः प्राह रे रेऽहं भिडवीरकः / श्रूयतां पणबन्धेन कर्त्तव्यं तत्प्रयोजनम् // 27 // | अम्बडो मण्डयेदम्भ-मुरस्कुम्भ[स्तुम्भ]समुद्भवम् / वराको वेत्ति को मानं काष्ठकोटरकूटयोः // 28 // 4 पत्तने नवलक्षे यत् बोहित्थव्यवहारिणः। पुत्रिका रूपिणी नाम्ना तयाऽहं ददृशे पुरा // 26 // मत्तुल्या बोत्कटीरूपा समागत्य मया सह / तस्याश्च साक्षिकीभूय चेत्कुर्वन्तु ममेप्सितम् // 130 // तदाऽहमत्र युष्माकं स्तम्भ मुश्चामि नान्यथा / प्रतिपन्नं ततस्ताभि-वैचो मान्यमशक्तितः // 31 // कथयिष्यसि यत्सर्वं करिष्यामस्तथा वयम् / अस्मान मुञ्च परं वीर ! तेन मुक्ता वशीकृताः // 32 // छागीरूपाभिरेताभिः छागरूपोऽम्बडः स्वयम् / तस्या श्रावासमीन-मपूर्वमिति दृष्टवान् // 33 // // 4 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116