Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बडचरित्रम् // 47 // इमास्ता वृष्णीनां हरिचरणयुग्मैकशरणा, हियन्ते गोपालैर्विधरिह बलीयान् न पुरुषः // 1 // शक्तिर्यद्यस्ति कोन्तेय ! धनुः पूरय गाण्डिवम् / वयमाभीरकाः पार्थ न भीष्मद्रोणसूनवः // 2 // इतश्च गृध्रपक्षी सः कुक्षिभारसमाकुलः / कस्मिन् महति वृतेऽस्थाद्यतो नोडयितुं क्षमः // 3 // व्याधेन केनचित्तत्र भ्रमता तं विहङ्गमम् / स्थूलं दृष्ट्वा स बाणेन निहत्य पातितो भुवि // 1 // गृध्रेण च बको मुक्तो बको मीनं मुमोच सः। मीनेन मानवस्त्यक्तो जठरानलमूछितः // 5 // तादृशं मानवं दृष्ट्वा व्याधो विस्मयमाप्तवान् / सानुकूले विधौ किन्तु जन्तुर्जीवति भक्षितः // 6 // उक्तश्च-“अरक्षितं तिष्ठति देवरक्षितं, सुरक्षितं दैवहतं विनश्यति / ___तस्मान्न शोको न च विस्मयो मे, पुराणमेतत् नृषु कर्मकारणम् // 7 // संजीव्य शीतवातेन प्रक्षाल्य वारिणाम्बडम् / लुब्धको लब्धचैतन्यं कृत्वा पप्रच्छ कारणम् // 8 // अम्बडो निजवृत्तान्तं निजगाद तदग्रतः। आकार्य स्वगृहे व्याधः सस्नेहं तमभोजयत् // 1 // यतः-सर्वत्र शुचयो धीराः पापाः सर्वत्र शङ्किताः / सर्वत्र दुःखिना दुःखं सर्वत्र सुखीनां सुखम् // 11 // दिने तस्मिन् स्थितस्तत्र व्याधेनावर्जितो निशि / शयितोऽजागरीत् मध्य-रात्रे पश्यति कौतुकम् // 11 // // 47 //

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