Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 50
________________ आदेशः // तत् श्रुत्वा मूच्छिता कन्या पपात पृथिवीतले / ऊटजे बटुको गत्वा तातमाहृय चागमत् // 11 // अम्बड- AI ज्ञात्वा राजर्षिरात्मानं शोचयत्येव देवतः / यदरो दुर्लभः प्राप्तो भूयोऽभूद् दुर्लभो हहा // 12 // चरित्रम् || जनकः शीतलैवा तै-यस्या मूर्छामपाकरोत् / विरहेणाम्बडस्याम्बु-हीना मीना हि साऽभवत् // 13 // // 46 // VII क्षणं सरोवरस्थाने क्षणं च भवने वने / परं क्वापि रतिं नैव हा देव ! किमिदं कृतम् // 14 // यतः-रे विहिणा मा सजसि मा सञ्जसि माणसं जम्मं / जय जम्मं तय पिम्मं पिम्म तय मा वियोगस्स // सारसडां मोती चिणइ चिणइ तु मिल्हइ काइ / व्हाला माणस ज्यु मीलइ मीलइ तु विहडई काइ // 15 // रे विहि मग्गु किंपि तुह ज्युमनवंछित देइ / नेहइं बांधिया माणसां मा विछोह करेइ // 66 // उपालंभं यदित्थं सा देव ! रे वञ्चिता कथम् / अरोदीदसुखं धत्ते चित्ते दहति वल्लभम् // 17 // यतः-पावसिकालपवासो भज्जामरणं च जुव्वणारं मे / पढमसिणेह विओगो तिन्नि वि गरुआई दुक्खाई // 8 // _ दिणजाइ जणवत्तडी पणि रत्तडी न वि जाइ / एकरोगी नइरोगीआं सहजि सरीखुथाइ // 66 // शोचयन्ती स्वकर्मासौ कालं नयति दुःखिता। न कोऽपि बलवान् स्रष्टु-दैवं प्रति न शौर्यता // 10 // उक्तश्च- "त एवामी बाणास्तदपि वरलब्धं धनुरिदं, स एवाहं पार्थः प्रमथितसुरारातिपृतनः / // 46 //

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