Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 56
________________ अम्बर चरित्रम् // 52 // मर्कटी नवलक्षाऽस्ति स्वस्तिकृत्तव रूपिणि / / साम्प्रतं देहि तां मह्य यथा पश्चात् ब्रजाम्यहम् // 55 // तदा जगाद सा वश्या सम्बन्धं मर्कटीभवम् / प्रथमं शृणु तं सिद्ध ! प्रसिद्धः शक्तिशक्तितः // 56 // सारचन्द्राभिधो देव-पूर्वमाराधितो मया। प्रसन्नीभूय सोऽप्येतां मह्य मर्कटिकां ददौ // 5 // प्रभावं सोऽवदत्तस्याः पार्श्वे या रक्षिता सती / ददाति सुखसौभाग्यं तस्य न स्यात् पराभवः॥५८॥ इयं प्रतिदिनं दत्ते नवरत्नानि सुन्दर ! / दिलक्षमूल्यमेकैकं तेनैवंविधरक्षणम् // 56 // वर्त्तते मर्कटी यत्र तत्राहं पार्श्ववर्तिनी / न भवामि विना चैना-मभावेन मृतिर्मम // 16 // काया रसवती यत्र छाया यत्र वनस्पतिः। वर्दीिपशिखा यत्र दृष्टिर्यत्र कनीनिका // 6 // तव चेदनया कार्य तदादौ मां विवाहय / भवन्तमन्वहं स्वामि-न्नेषा मामनुगा कपी // 62 // अम्बडः प्राह हे भद्रे ! पितरं त्वं निवेदय / अविमृश्य कृतं कर्म-शर्मणः संशयो भवेत् // 63 // यतः-सहसा विदधीत न क्रिया-मविवेकः परमापदा पदम् / वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलब्धाः स्वयमेव सम्पदः // 6 // विचार्य विहितं कार्यं राज्यं भवति कर्तृणः / प्रपञ्चः क्रियते येन पिता ते मन्यते वचः॥६५॥ // 52 //

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