Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 60
________________ अम्बड चरित्रम् विदधातु स्वरूपेण भूपं विमलचन्द्रकम् / सोऽपि प्रमाणमित्युक्त्वा त्रिदिनं ध्यानमातनोत् // 18 // शान्तिकं भौतिकं कर्म होमहकादिपूर्वकम् / कृत्वा तजलपानेन स्वरूपेण नृपं व्यधात् // 16 // अभूत् जयजयारावः पत्तने मुमुदे जनः / वर्द्धापितोऽम्बडो राज-पत्नीभिर्मों क्तिकैस्तदा // 20 // प्रधानवचनात्तत्र नवलक्षपुराधिपः / आलिलिङ्गाम्बडं वीरं बहुसन्मानपूर्वकम् // 1 // राजा विमलचन्द्रेण कन्या वीरमती मुदा / अर्द्धराज्यं ददे तस्मै स्वोपकारी हि सोऽम्बडः // 2 // तत्तादृशं वरं ज्ञात्वा बोहित्थव्यवहारिणा। मर्कटी सहिता दत्ता रूपिणी परिणायिता // 3 // चतस्रोऽपि च ताः कन्या अम्बडः परिणीतवान् / सुखं तस्थौ कियत्कालं षटकन्यासहितोऽम्बडः // 4 // अम्बडः सर्वमापृच्छय कुशलेनाऽचलत्ततः। सुगन्धवनमागात्सोऽपश्यनत्रामरावतीम् // 5 // | रुदती निन्दति स्म स्वं मुनिकन्याऽमरावती / वरं प्राप्तं कथं दैव ! गृहीतं झटिति त्वया // 6 // धिर धिग् रे कानि कर्माणि कृतानि कटिरे मया। हस्तागतो गतो वीरो यो वृत्तो धनदोदितः॥७॥ यतः-काई किधुं दैवइं अवतार, आगलि आविओ गयु भरतार।। भवि मई कीधा केहां पाप, बालविछोहियां मुनिसन्ताप // 8 //

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