Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड बादर्श चरित्रम् // 54 // अन्तःपुर्यस्तदा सर्वा सगर्वाः अपि कातराः। पटुरेवं वरं भर्ता न पुनर्योषितां त्रपा // 7 // एवविधं पुरस्यैतत् चलचित्तं स्वरूपकम् / कियत्यपि दिने मत्वा कृपावानम्बडोऽभवत् // 77 // वनमध्ये ततो विद्यां स स्मृत्वा बहुरूपिणीम् / आत्मनः परितः सैन्यं विचक्रे चतुरङ्गिकम् // 78|| सुभटान् शिक्षयामास व्रजन्तु नगरान्तरे / स्वबुद्धया निजनाथस्य ज्ञातव्यं कथयन्तु भोः // 7 // यतः-जले तैलं खले गुह्य पात्रे दानं मनागपि / प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तार वस्तुशक्तितः // 10 // सीखिया बोलनइमविउं वरउं बिहुँ सुहमदीठ / उलटिया धन वावरइ ते केहीइ एकजनिठ 1 // 81 // | अम्बडप्रेषितास्तत्र सुभटाः प्राज्ञबुद्धयः। आगत्य नगरद्वारं पिहितं वीक्ष्य तेऽवदत् // 82 // | शृण्वन्तु नगरद्वार-पालका ! बालका इव / उद्घाटयन्तु भो वेगा-दस्मत् स्वामी समागमत् // 83|| असौ रथपुराधीशः सुश्रावेति पथि ब्रजन् / अजरूपोऽभवद्भपो नवलक्षपुरे हहा // 8 // सोऽपि वीक्षितुमायातो विद्यावान स्वजनप्रियः। कदा तस्य भवेद्भाग्यं तदोपायं करोत्यदः / 85 // श्रुत्वेति नगरद्वार-पालकैर्मन्त्रिणोऽकथि / तथैवं मुदिता भूयः सम्भूय तत्र चागमत् // 86 // // 54 //

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