Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ चतुर्थ अम्बड चरित्रम् आदेशः व्याधस्य पुत्रिका गेहा-निर्जगाम बहिस्तदा / अम्बडोऽपि समुत्थाय पृष्ठे तस्या शनैर्ययौ // 12 // / रथ्यायां पुरतस्तस्याः मिलिता तादृशी त्रयी / एका क्षत्रियतनया नामतो नागिणिः स्मृता // 13 // द्वितीया वणिक्सुता सोही तृतीया विप्रनन्दना। रामती नामतस्तिस्रो व्याधपुत्र्याऽमिलन समम् // 14 // // 48 // सर्वाः प्रत्येकमालिङ्गय कथितं व्याधकन्यया। समागच्छन्तु हे सख्यः पर्याप्तं क्रीडयाऽधुना॥ 15 // बोहित्थभवने यामो रूपिणीमिलने वयम् / प्रोचुस्ताः सखि हे साढे सहायः कोऽस्ति गम्यते // 16 // इति सर्वाः प्रकुर्वन्त्य-स्तत्र वार्ता परस्परम् / बभूवुर्बोत्कटीरूपाः क्रीडन्ति भ्रमरी ददुः // 17 // प्रच्छन्नीभूय सोऽपश्यत् यत्नश्यन्ति करोमि तत् / इति मत्वा स्वयं क्रूर-बोत्कटाऽजनि सोऽम्बडः // 18 // | रौद्र चकार बुक्कारं दधावे सोऽपि तां प्रति / अकस्मात्त्रासितास्तेन नष्ट्वा स्वस्वगृहं गताः // 16 // | मिलिताः प्रातरेकत्र गुह्य कुर्वन्ति ता मिथः / श्रात्मनामद्य कि रात्रौ संजातं त्रासकारणम् / / 120 // ज्ञायते नैव केनापि धूर्तेन भापिता वयम् / ज्ञास्यते सर्वमेवाद्य रात्रौ सद्यस्तदात्मभिः // 21 // प्रच्छन्नः श्रुतवान् सर्वं भव्यं चित्ते व्यचिन्तयत् / विगोपयामि सद्यता-स्तदा सत्योऽहमम्बडः // 22 // // 48 //

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116