Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चतुर्थ चरित्रम् आदेशः // 45 // हे अम्बड ! गृहे तस्या दृष्टया पादावधार्यताम् / या त्वामुत्कण्ठते भावि-भर्तारं भाविवल्लभा // 7 // समं तेनाम्बडो वीरः सहर्ष तद्गृहे ययौ / आगतं वीक्ष्य तं नाथ-मभ्युत्थानं तया कृतम् // 8 // आसन्नं दौकितं नत्वा कन्यया बहुमानतः / उपविष्टोऽम्बडस्तस्य-मिलितो मनसा दृशा // 1 // यतः-अभ्युत्थानं तदालोके भयानं च तदागमे / शिरस्यञ्जलि संश्लेष-स्वयमासनढौकनम् // 82 // नमि न मुकई वइसणु हसीय न पूछह वत्त / तेह घरी किम जाईए रे हीयडा निसत्त // 3 // स तां पप्रच्छ हे भद्रे ! पिता ते तापसः कुतः / मिलनार्थं मया तस्य गम्यते नम्यते च सः // 8 // चिराय प्राप्तवानेष चिन्तयत्यमरावती। दृशोः पारणमत्रास्तु कन्यका बटुमब्रवीत् // 85 / / | आगच्छ तातमाहूय कथिते बटुकोऽव्रजत् / अन्वगादम्बडस्तावत् मुक्त्वा रत्नत्रयं च ताम् // 86 // / अग्रे याति बटुः स्पष्टं पृष्ठगो याति सोऽम्बडः / अर्द्धमार्गे जलस्यैव मत्स्येन गलितोऽम्बडः // 87 // | | बकेन गलितो मत्स्यो गृध्नेण गलितो बकः / सोऽपि व्योम्नि समुड्डीनो न पुष्पबटुनेक्षितः // 88|| | यावत्पश्यति पृष्टे स न पश्येत्तावदम्बडम् / द्रुतं तं वलितः पश्चात् जले सर्वत्र वीक्षितः // 8 // नैव दृष्टः कुतः सोऽपि कटिरे क्व गतोऽम्बडः / वलित्वा सोऽमरावत्याः स्वरूपं तादृशं जगौ // 10 // || // 45 //

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