Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बड चतुर्थ चरित्रम् आदेशः // 43 // कूया कंठउ वली होअसि, होसइ वली अवाह / म मरु बाल मावडी तरुणी भलेरु नाह // 4 // रे रे उठी बप्पडी मुहूढां कीम मरोइ / यम राउलां चइजु फरइ कलिइ न मरइ कोइ // 8 // दुःखे सुखे भवेन्मृत्युर्योगे भोगे च जन्मिनाम् / अजन्मिनां पुनर्नेव तदजन्म विधीयताम् // 5 // इति शोकं नृपस्त्यक्त्वा पालयामास पुत्रिकाम् / श्रजल्पयत् तदा प्रौढी-भूतां नाम्नाऽमरावतीम् // 6 // रूपेण निर्जितेन्द्राणी-वाणी सर्वकलाश्रयात् / कामदेववनं दिव्य-यौवनं प्राप सा सुता // 61 // अन्यदा व्योममार्गेण गच्छता धनदेन सा / दृष्ट्वा व्यामोहितः सोऽपि कोऽपि स्त्रीषु पपात न // 2 // यक्षेश्वराय राजर्षिः पुत्रिकां दातुमिच्छति। न काङ्क्षति परं कन्या तं वरं हृदि नो वरम् // 63 // कामार्थी धनदस्तस्या लोभं दर्शयतीत्यतः / फलेनैकेन सहितः तस्यै रत्नत्रयं ददौ // 6 // ___ यतः-यत्रामिपं तत्र पतन्ति गृध्रा, यत्रोदकं तत्र पतन्ति जीवाः / यत्र श्रियः तत्र लगन्ति नार्यो, यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति // 65 // जगौ प्रभावमेकेन जलस्योपद्रवो न च / द्वितीयेनैव रत्नेन पावकोपद्रवो न तु // 66 // भूतप्रेतादिकक्षुद्रो-पद्रवो न तृतीयके / फलेन वाञ्छितं सर्व-मिति विज्ञाय तत्फलम् // 67 // // 43 //

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