Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 22
________________ द्वितीय अम्बड चरित्रम् आदेशः // 18 // अथ लग्नदिने तत्र पत्तने सेनयान्वितः। सर्वविवाहसामग्र्या सोऽपि सोत्सवमागमत् // 36 // धवले गीयमाने च विस्तृते मङ्गलस्वरे / वाद्यषु वाद्यमानेषु तोरणे वर आययौ // 37 // | उच्चरन्ति द्विजा वेदान् समये तत्र कन्यका / नारीभिर्गोत्रवृद्धाभिः कृतमङ्गलमजना // 38 // सर्वाभरणसम्पूर्णा विवाहोचितचीवरा। नीयमाना मातृगृहे हस्तमेलापके तदा // 3 // युग्मम् / | अग्रे परिदधौ कन्या सूर्यदत्तं च कञ्चकम् / अपूर्व तं ग्रहीतु सा जहे दुष्टेन केनचित् // 40 // यो व्रजन् व्योममार्गेण बलाद् गृह्णाति कञ्चकम् / न मुञ्चति परं कन्या तेनात्यन्तं कदर्थिता // 41 // पापिना तेन कोपेन क्षिप्ताधो भुवि सोऽगमत् / श्रहो जानीहि सैवाहं पतिता तेन रोदिमि // 42 // | देवो मेऽद्यापि किं कर्ता हर्ताऽभूत् सर्वसम्पदः / कथ्यते कस्य दुःखं च चिन्तितं कार्यमन्यथा // 43 // यतः-जन जाणइ मनि अप्पणइ मनवंछित पूरेसु / देव भणइ रे जीवडा हुँ पण अवर करेसु॥४४॥ अवली करणी दैवनी जे नरपति जु कोइ / आरंभिउं जिरहइ अवर अचींतिउ होइ // 45 // | अम्बडः प्राह हे भद्रे ! मा रोदीभविता। सूर्यकञ्चुकवृत्तान्तं ममाग्रे कथयाधुना // 46 // // 18 //

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