Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ अम्बडचरित्रम् तृतीय आदेशः // 34 // | राजपुत्री वचस्तस्याः सत्यंमन्येत्यभाषत / वरमेनं वरिष्यामि वृणु त्वं तमपि स्वसः // 7 // प्रतिज्ञायेति पुरुषः प्रेषणीयः स एव हि / मम पार्वे यथा वार्ती समं तेन करोम्यहम् // 76 // प्रमाणमिति सोत्तस्थौ याता चाम्बडसन्निधौ / स्वामिन्नाकारिता सायं सत्त्वरं राजकन्यया // 77 // | स्वर्णवातायनस्येह-चिह्नन चतुराग्रणीः / तस्या वेश्मनि गन्तव्यं तदाकूतं तवोपरि // 7 // कथयित्वेति सा राजी जगाम स्वगृहं ततः / को वेत्ति चरितं स्त्रीणां दुर्गमं हि दिवौकसाम् // 7 // अम्बडो निशि कार्यार्थी ययौ राजसुतान्तिकम् / कन्यासन्मुखमागत्या-नमत्स्वागतपूर्वकम् // 20 // आसनस्थस्तया सोऽपि जल्पितः प्रेमभाषया / अभिप्रायेण कन्याया अम्बडस्तादृशं जगौ // 1 // पाश्चात्यरजनीयामे गन्तुकामस्य तस्य च / कन्यया दधतः प्रेम पत्रबीटकमर्पितम् / / 82 // ततस्तत्फलचूर्णेन भावितं हावभावतः। वलमानं ददौ तस्यै पत्रबीटकमम्बडः // 8 // यतः ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति / भुङ्क्ते भुञ्जयते चैव षट्विधं प्रीतिलक्षणम् // 4 // मुदा सुप्ता तदास्वाद्य-तन्नाम स्मरणादियम् / तदिधायागमत्सोऽपि स्वस्थाने कौतुकप्रियः // 5 // / // 34 //

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