Book Title: Ambad Charitram
Author(s): Muniratnasuri, Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 36
________________ अम्बड चरित्रम् | राजिके ! मण्डितं किञ्च त्रपाकारीति नर्तनम् / सा प्राह राजकन्येऽत्र त्वमेवागच्छ नर्त्तय // 56 // तृतीय | तदा राजसुता प्राह-पर्याप्तं सखि ! नर्त्तनैः। त्वमेव नृत्य निर्लज्जे ! राजिका सस्मितं जगौ / / 57 // || आदेश: मम चन्द्रयशे ! चित्ते नृत्यं स्यात् हृदयङ्गमम् / दृष्ट्वा राज्याः पिता माता ततो भूपं व्यजिज्ञपत् // 58 // // 32 // | हे राजन् केन धूर्तेन पुत्रिका विप्रतारिता। किं क्रियते नृपः प्राह-वैरोचन ! विचारय // 56 // | अम्बडः क्षणमात्रेण शिवरूपेण नृत्यति / ततोऽसौ विष्णुरूपेण ब्रह्मरूपेण विद्यया // 6 // सपञ्चशब्दवाद्यन रसालं नाटकं भवेत् / लोकश्च नृपतिर्वीक्ष्य जानातीति स्वचेतसि // 61 // क्षणमात्रमिदं नृत्यं न मुञ्चति तदा वरम् / स्वर्गीणं मानुषं किन्तु दृष्ट्वा सर्वं विसिस्मये // 2 // रञ्जितोऽपि जनो राजा दत्तं दानं चमत्कृतः / दीयमानमनल्पं च स्वल्पं गृह्णाति नैव सः॥६३॥ राजलोकैः तदा ज्ञातं निर्लोभकोऽप्यसौ नरः। सिद्धविद्याधरः कश्चि-विस्मयं प्राप्तवान् जनः॥६॥ तादृशे समये नृत्यं तद्यसर्जयदम्बडः / विद्युत् मात्कारवल्लोका वर्णयन्तो गृहं ययौ // 65 // // 32 //

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